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झारखंड मे पर्यावरण संरक्षण हेतु बड़ते प्रयास


मनुस्य पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण भाग है, परन्तु निरन्तर जनसंख्या में बृद्धि होने के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक उपभोग और तेजी से दोहन हो रहा है। जिसके परिणामस्वरूप मृदा निंम्नकरण, जैव विविधता में कमी और वायु, जल स्रोतों के प्रदुषण के रूप में दिखाई पड़ रहा है साथ ही अत्यधिक दोहन के कारण पर्यावरण का असंतुलन हो रहा है, पर्यावरण असंतुलन के कारण बारिश की कमी, अत्यधिक असहनीय गर्मी, कम समय में अधिक बारिश, बाढ़ या सूखे का सामना करना पड़ रहा है, पर्यावरण में घुलने वाली जहरीली गैसे ओज़ोन परत को प्रभावित करती है, ऐसी स्थिति में प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है कि हम अपने पर्यावरण को संतुलन बनाये रखने के लिए कुछ प्रयास करते रहे।

सहभागी शिक्षण केंद्र बिगत 12 बर्षो से झारखण्ड के पलामू जिला स्थित हुसैनाबाद प्रखंड के 02 ग्राम पंचायतों में सघन विकास कार्य कर रही है, सस्थां द्वारा संचालित बिभिन्न कार्यक्रमों में पर्यावरण को संतुलन बनाने के लिए अनेक गतिविधियों को शामिल किया जाता है ताकि क्षेत्र में पर्यावरण को संतुलन बनाये रखा जा सके। सहभागी शिक्षण केंद्र द्वारा विभिन्न सहयोगी उद्योग घरानों के सहयोग से विगत 12 बर्षो में महुअरी एवं लोटनिया ग्राम पंचायत के 10 गाँवो में 3500 परिवारों में 9000 फलदार एवं आयुषधियुक्त वृक्ष लगाए गए, विगत 02 बर्षो में सस्थान ने LIC HFL के सहयोग से 6700 पेड़ और लगाए गए हैं, इसमें अधिकांशतः आम, अमरुद, कटहल, शीशम, पपीता, नीबू , ईमली, अनार, जामुन एवं आँवला पेड़ो शामिल हैं, समुदाय के लोगो ने भी इन पेड़ो को बढ़ चढ़ कर अपने घरों एवं खेतो में लगाया, कुछ वृक्षों में फल भी देने लगे है, इसके अतिरिक्त संस्थान द्वारा स्थानीय थाना के सहयोग से थाना परिसर में भी व्यापक वृक्षारोपण किया गया, इस प्रकार संस्थान ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में जनसमुदाय के सहयोग से वृक्षारोपण का कार्य किया, पेड़ो के लगने से आस पास का वातावरण शुद्ध एवं प्रदूषण रहित हो गया हैं।


धुआँ रहित चूल्हा का वितरण -

कहते है कि भारत की आत्मा गांवो में निवास करती है, परतुं अब इसे संयोग वह विडंबना कहें कि गांवो की महिलाएँ आज भी घरेलू प्रदूषण के कारण कई तरह की बीमारियों से जूझ रही है, जिसका मुख्य कारण महिलाओं के द्वारा लकड़ी के चुल्हों पर खाना बनाना, इन हानिकारक धुआँ के प्रयोग से महिलाओं में स्वशन रोग के शिकार होते है, इसके अतिरिक्त महिलाओं में आँख की बीमारी भी होती हैं, गरीबी एवं निर्धनता के कारण महिलाये खाना बनाने हेतु लकड़ी के चूल्हा का प्रयोग करती है, सहभागी शिक्षण केंद्र एवं LIC HFL के सहयोग से 550 परिवारों को धुआँ रहित चूल्हा का वितरण अत्त्यन्त गरीब महिलाओं में वितरण किया गया, इन धुआँ रहित चुल्हो को जलाने हेतु कम ईंधन लगता है, और साथ ही कम धुआँ निकलता है, चूल्हो से कम धुआँ निकलने से पर्यावरण का संतुलन बना रहता है, और वातावरण में कार्बन की प्रशितता भी कम हो गई है।


सौर ऊर्जा स्ट्रीट लाइट -

हमारे देश में सौर ऊर्जा का प्रयोग बहुत ही कम मात्रा में किया जाता है, हम

पर्यावरण को नुकसान पहुँचाये बिना सौर ऊर्जा से बिजली उत्पन्न करते हुए प्रकाश कर सकते है, इस सौर ऊर्जा से ना तो किसी प्रकार का विषैली गैस उत्सर्जन होता है, और ना ही किसी प्रकार का ध्वनि प्रदूषण और न वायु प्रदूषण होता है, आज देश में बिजली पन बिजली, थर्मल पावर एवं नूक्लिअर पावर द्वारा उत्पन्न किया जाता है, परन्तु इन माध्यमों से उत्पन्न बिजली करने के दौरान कई प्रकार के हानिकारक तत्व वायु में मिश्रित हो जाते है, जो पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदायक है, ,ऐसी स्थिति में सहभागी शिक्षण केंद्र एवं LIC HFL के सहयोग से हस्तक्षेपित गॉव में 82 सौर ऊर्जा चलित सोलर स्ट्रीट लगाया गया है, इन सोलर स्ट्रीट लाइट के लगने से रात में सड़को पर प्रकाश के साथ साथ कोई शुल्क नहीं देना पड़ता है।




जैविक कृषि कोबढ़ावा -


देश की जनसंख्या में लगातार वृद्धि होने के कारण कृषि भूमि दिन प्रति दिन कम होती जा रही है, किसान न चाहते

हुए भी अधिक उत्पादन लेने के लिए खेतो में अतिरिक्त रासायनिक खाद एवं दवाओं का प्रयोग करने लगे है, इन रासायनिकखादों के प्रयोग से फसलों का पैदावार ज्यादा होती है, परन्तु स्वास्थ्य के लिए नुकसानओने दायक है, इसके साथ ही खेत के बंजर होने का भय बना रहता है, ऐसी स्थिति में सहभागी शिक्षण केंद्र एवं LIC HFL के सहयोग से किसानो के बीच जैविक कृषि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 90 वर्मी कम्पोस्ट पिट का निर्माण किया गया है, जैविक खाद के प्रयोग से पर्यावरण संतुलन रहता है, उत्पादित फसल/ सब्जी खाने से स्वास्थ्य में नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है, जैविक कृषि से भूमि व पर्यावरण पर नियंत्रण होती है, तथा रासायनिक खाद से सस्ता पड़ता है, आज स्थानीय किसान अपने अपने खेतो में रासायनिक खाद के जगह जैविक खाद का प्रयोग करने लगे है।


कृषि में श्री विधि का प्रयोग

कृषि के क्षेत्र में किसानो द्वारा पानी का कम उपयोग करने एवं कम लागत पर खेती करने हेतु अधिकांश किसान धान एवं गेहू की परंपरागत कृषि पद्धति को छोड़ कर श्री विधि तकनीक का प्रयोग कर रहे है श्री विधि तकनीक से भूमि की उर्वरा सकती भी बनी रहती है, इस विधि से खेती करने के लिए किसानों को फसलों में नाम मात्र अर्थात फसल के जड़ को नमी रखना पड़ता है, सहभागी शिक्षण केंद्र ने LIC HFL के सहयोग से हस्तक्षेपित ग्राम पंचायतो के 164 किसानो के द्वारा कुल 740 कट्ठा जमीन पर धान की खेती किया, वही 149 किसानो द्वारा कुल 745 कट्ठा जमीन पर श्री विधि (SRI) से गेहू की खेती किया, परिणामस्वरूप किसानों को 1 से 3 कुंटल अनाज ज्यादा पैदावार हुआ, वही दुसरी ओर लागत मूल्य भी पहले की तुलना में काफी कम हुआ,


सौर ऊर्जा चलित जल मिनार


वर्तमान समय में ग्रामीण क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल हेतु सौर ऊर्जा चलित जल मिनार बहुत ही प्रचलित है, क्योकि ग्रामीण क्षेत्रो में बिजली का व्यापक अभाव रहता है, जिसके कारण बिजली संचालित मशीन जो जलमीनार में लगी है,चल नहीं पाती है, ऐसी स्थिति में सौर ऊर्जा चलित जल मिनार बहुत सफल है, क्योंकि ग्रामीण को मुफ़्त में शुद्ध पानी मिल जाता है, और न ही बिजली का कोई शुल्क देना पड़ता है, सौर ऊर्जा चलित जल मिनार से आस पास के 20 से 25 परिवारों को शुद्ध पीने हेतु पानी मिलता है, सहभागी शिक्षण केंद्र द्वारा LIC HFL के सहयोग सेहस्तक्षेपित ग्राम पंचायतो में कुल 12 जल मीनार स्थापना किया है वर्तमान समय में इन जल मीनारों से सभी वर्गो के लोग लाभ ले रहे है।







 

लेखक

संजीव चक्रबर्ती

कार्यक्रम समन्वयक,

सहभागी शिक्षण केंद्र, झारखंड

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